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लेखनी कविता -11-Feb-2022 (प्रकृति का स्वरूप )

सुंदर आच्छादित  मन को हर्षाता
मंत्रमुग्ध  करे  प्रकृति  का स्वरूप
अरुणोदय हुई तो खिली कलियां
और पवन, जल–धारा बहे समरूप


सुंदर बड़ा धरा की छटा अरु स्वरूप
वसुंधरा की माटी देती कनक अरूप
प्रकृति दोहन छोड़ ना समझ कुरूप
मां है इसे चाहो अपने प्राण-स्वरूप


अनुपम   सौंदर्य   का   श्रृंगार  लिए
रंगों भरा मौसम आई है  बहार लिए
सूरज ,धरा ,आकाश,नीर और चन्द्र
बैठी रहे सदा नई–नई उपहार लिए


समझना होगा जीवन का सही रूप
एक है पर्वत,झरने,एक है मिट्टी एक
एक है आसमाँ एक है चंद एक अरु
ये समस्त मिलकर ही बना ब्रम्हरूप


©® प्रेमयाद कुमार नवीन
जिला - महासमुन्द (छःग)

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2 Comments

Seema Priyadarshini sahay

16-Feb-2022 04:01 PM

बहुत खूबसूरत

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Swati chourasia

11-Feb-2022 09:35 PM

बहुत ही सुंदर रचना 👌

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